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विलुप्त हो चुकीं नदियों को पुनर्जीवन देगा आईआईटी में विकसित मॉडल, डेनमार्क सरकार के सहयोग से स्मार्ट प्रयोगशाला स्थापित
- न्यूज़
- Monday | 9th September, 2024
उत्तर प्रदेश में 18 से अधिक नदियां सई, पांडु, मंदाकिनी, टेढ़ी, वसुई, पीली, मनोरमा, वरुणा, ससुर खदेरी, अरिल, मोरवा, तमसा, नाद, कर्णावती, बान, काली पूर्वी, डाढ़ी, ईशन, सोन, बूढ़ी गंगा व गोमती अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं। क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री से तय होगी प्रदूषण की मात्रा आईआईटी बीएचयू के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिशिर गौर ने बताया कि जल प्रबंधन के लिए निर्णय समर्थन प्रणाली (डीएसएस) कंप्यूटर प्रोग्राम एप्लीकेशन विकसित होगा ताकि जल विज्ञान मॉडल, परिदृश्य निर्माण, पूर्वानुमान और डेटा विश्लेषण से बेसिन जल गतिशीलता पर अध्ययन हो सके।
भूजल व जल विज्ञान मॉडल को एकीकृत करके व्यापक नदी प्रबंधन योजना बनेगी। उभरते प्रदूषकों और फिंगरप्रिंट विश्लेषण के लक्षण को विस्तार मिलेगा।
18 महीने में प्रदूषकों की पहचान होगी।
प्रदूषण की मात्रा निर्धारित करने के लिए क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री जैसी विश्लेषणात्मक तकनीक अपनाई जाएगी। डेनमार्क के कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के नेतृत्व में फिंगरप्रिंट लाइब्रेरी बनेगी।
जल गुणवत्ता की निगरानी करते हुए उपचार का प्रस्ताव बनेगा।
इमरर्जिंग पोल्यूटेंट तकनीक से पता चलेगा कि नदी में कौन से प्रदूषण तत्व हैं।
पानी की पीएच, चालकता और घुलित ऑक्सीजन क्षमता जैसे कई मापदंडों का पता लगाया जाएगा। चार जिलों से गुजरती है वरुणा, गंगा में होता विलय काशी को वाराणसी नाम वरुणा व असि नदी से ही मिला है।
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