Varanasi Ramlila: मेघा भगत की भक्ति, काशी की रामलीला की शक्ति; देखें तस्‍वीरें

इसे भी पढ़ें-अब कुशीनगर के सभी मंदिरों के पुजारियों को मिलेगा मानदेय, प्रस्‍ताव पर लगी मोहर लीला की शास्त्रीय व्याख्या करते हुए विद्वानों ने कहा है कि -(प्रियानुकरणं लीला मधुरांग विशेष्टितैः) "प्रिय का अनुकरण ही लीला "है।

कुल मिलाकर रामलीला एक अनुष्ठान है , जहां जनता के आराध्य कोई आकाश के देवता न होकर उसके बीच के अपने नायक श्री रामचंद्र हैं, जो जीवन के विविध क्षेत्रों में उच्च आदर्श की स्थापना के साथ धैर्यपूर्वक बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की पराक्रमपूर्ण भूमिका से ओतप्रोत हैं। इस तरह रामकथा के लीला- अनुकरण ( रामलीला) के इतिहास को देखा जाए तो यह परंपरा तुलसीदास के बाद खूब पुष्पित पल्लवित हुई।

संत तुलसीदास व इनके प्रिय साथी मेघा भगत को काशी में रामलीलाओं की सुव्यवस्थित शुरुआत का श्रेय जाता है।

काशी में रामलीला की प्राचीनता और और शुरुआत को लेकर अनेकों किंवदंतियां प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने अयोध्या में दो बालकों को रघुनायक की लीला करते हुए देखा था जिससे प्रेरित होकर इन्होंने रामलीला की शुरुआत कराई।

एक दूसरी किंवदन्ती के अनुसार तुलसीदास के अवसान के उपरांत एक बार मेघा भगत अयोध्या गए।

वहां धनुष- बाण धारी दो बालक उन्हें मिले, जिन्होंने अपना धनुष बाण मेघा भगत को सौंप कर वापस लौटने की बात कही, लेकिन वे राजकुमार लौटे नहीं। लाट भैरव की रामलीला में केवट प्रसंग का जीवंत दृश्य प्रस्तुत करते पात्र।-जागरण (फाइल फोटो) प्रतीक्षा करते हुए थके मेघा भगत जब सो गए तो स्वप्न में उन्हें दोनों बालक दिखाई दिए, जिन्होंने काशी लौट कर रामलीला की झांकी शुरू करने का आदेश दिया।

किवदंती के अनुसार मेघा भगत ने नाटी इमली पर प्रथम बार भरत मिलाप के प्रसंग का मंचन किया, इस मंचन के उपरांत मेघा भगत ने इहलोक त्याग दिया। इसे भी पढ़ें-हैवानियत की शिकार नाबालिग की अंत्येष्टि से पहले सात घंटे चली तकरार वस्तुतः काशी की कौन सी रामलीला अति प्राचीन है, इसे लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं।

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