वाराणसी में हुई सृष्टि के पहले शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा की पूजा

संक्षेप:

  • शिव की नगरी काशी में भगवान विश्वकर्मा की जयंती
  • व्यवसायियों ने की देवताओं के इंजीनियर विश्वकर्मा की पूजा
  • सृष्टि के पहले शिल्पकार माने जाते हैं विश्वकर्मा

वाराणसी : विश्व निर्माण करने वाले देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती शिव की नगरी काशी में भी मनाई गयी। आज निर्माण कार्य से जुड़े लोग अपने अस्त्र शस्त्र को विधि पूर्वक रखकर भगवान विश्वकर्मा की पूजा कर उनसे अपने कार्य बल में वृद्धि के लिए प्रार्थना की।

मान्यताओं के अनुसार विश्वकर्मा आदि शिल्पी के देवता है और आज के दिन तमाम कामकश व्यवसाय से जुडे लोग अपने अस्त्र शस्त्र को बंद कर इनकी पूजा करे तो भगवान विश्वकर्मा प्रसन्न होकर उन्हें आशीष प्रदान करते है आज के दिन सभी छोटे बड़े कारखाने बंद होते है।

वाराणसी के डीजल रेल इंजन कार्यालय में आज के दिन बड़ा ही खास होता है। सभी कर्मचारी साल में एक बार अपने परिवार के साथ इस कारखाने में आते है और जिस रेल में लोग यात्रा किया करते है। उसी रेल के इंजन को रेल कारखाने में किस तरह बनाया जाता है उसको देखते है।

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उद्योग जगत के देवता भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर उनकी विधिवि‍धान से पूजा अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्‍त‍ि होती है। भगवान विश्वकर्मा खुश होते हैं तो व्‍यवसाय आदि में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्‍की होती है। इस वर्ष भगवान विश्वकर्मा जयंती रवि‍वार के दिन 17 सितंबर को मनाई जा रही है।

सृष्टि का किया था निर्माण
विश्वकर्मा ने ही सृष्टि का निर्माण, रावण की सोने की लंका, पुष्पक विमान का निर्माण, कर्ण का कुण्डल, विष्णु जी का सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल और यमराज का कालदण्ड जैसी तमाम वस्तुओं का निर्माण किया था। जि‍ससे इन्‍हें देवताओं के अभियंता यानी कि इंजीनियर के रूप में जाना जाता है। विश्वकर्मा जंयती पर निर्माण कार्य में प्रयोग होने वाले सभी औजारों और मशीनों जैसे कंप्‍यूटर, संयंत्रों, मशीनरी से जुड़े दूसरे उपकरणों व वाहनों की पूजा की जाती है।

पूजा से खुश होंगे भगवान विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर उनकी पूजा और यज्ञ करना अनि‍वार्य माना जाता है। इस दिन पूजा में बैठने से पहले स्‍नान आदि से निवृत्‍त हो जाएं। इसके बाद भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करने के बाद एक चौकी पर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्‍वीर रखें। इसके पश्‍चात अपने दाह‍िने हाथ में फूल, अक्षत लेकर मंत्र पढ़े और अक्षत को चारों ओर छिड़के दें और फूल को जल में छोड़ दें। इस दौरान इस मंत्र का जाप करें।

ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:, ॐ अनन्तम नम:, ॐ पृथिव्यै नम:

 

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