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तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट पर राजनीति गरम, पूर्व राष्ट्रपति ने मिलावट को बताया पाप; गौमाता के लिए कही ये बात
- न्यूज़
- Sunday | 22nd September, 2024
ऐसी एकांगी सोच भारतीय संस्कृति के अनुरुप नहीं हो सकती है।
आखिर वह आइसोलेट होकर कैसे सोच सकते हैं।
ऐसे में गोवंश के विज्ञानी देश को समाधान बताएं। संस्कृति का केंद्र रहीं गोमाता कचरे के ढेर में तलाश रहीं भोजन, दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तक कैसे पहुंचे आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग और गो-विज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा कि हजारों वर्षों से हमारी संस्कृति का केंद्र रहीं गो माता अपनी भोजन की तलाश में इधर से उधर भटकने और कचरे के ढेर में भोजन को ढूढ़ते हुए पाई जातीं हैं।
इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तक कैसे पहुंच गए। पिछले कुछ दशकों में उत्पादन बढ़ाने के लक्ष्य से गोमूत्र व गाेमय की जगह रासायनिक तत्वों का उपयोग शुरू हुआ, इससे गोवंश की उपयोगिता घटने लगी।
उत्पादकता तो बढ़ा ली, लेकिन इन रासायनिक कीटनाशक और खादों के इस्तेमाल से कितनी कीमत चुका रहे हैं। पर्यावरण और मानव सेहत को नुकसान पहुंच रहा है।
खेत अपनी प्राकृतिक उर्वरता खोते जा रहे हैं।
सौ रुपये कमाने के लिए ऐसा नहीं करें कि उस रोग के लिए के लिए दाे सौ रुपये खर्च करना पड़े।
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