उदयपुर राजघराने में घमासान: 1984 का वो फैसला... राजतिलक के बाद भी नए महाराणा विश्वराज सिंह को क्यों नहीं मिली सिटी पैलेस में एंट्री?

लेकिन नए महाराणा विश्वराज सिंह ने कहा कि संपत्ति विवादों को शाही परंपराओं से दूर रखा जाना चाहिए और मैं सिर्फ देवी के दर्शन करना चाहता था।

राज्य सरकार ने एक रिसीवर नियुक्त करने का आदेश पारित किया है, इसके बाद धूनी माता मंदिर परिसर को उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया है।

विश्वराज सिंह को अब उम्मीद है कि प्रशासन इस आदेश के जरिए उनके लिए मंदिर के द्वार खुलवा देगा। कैसे शुरू हुई राजपरिवार की लड़ाई?श्री एकलिंगजी ट्रस्ट का गठन 1955 में मेवाड़ परिवार के महलों, मंदिरों और किलों के प्रबंधन के लिए किया गया था।

75वें महाराणा और विश्वराज सिंह के दादा भगवत सिंह के दो बेटे थे बड़े बेटे का नाम महेंद्र सिंह और छोटे बेटे का नाम अरविंद सिंह था।

अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने ट्रस्ट का नियंत्रण अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को दे दिया था और विश्वराज सिंह के पिता महेंद्र सिंह को इससे बाहर रखा था। इस फैसले से बदल गई पूरी कहानी जब भागवत सिंह जीवित थे, महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ अदालत में मामले भी दायर कर दिया था।

इसके कारण भागवत सिंह ने 15 मई 1984 को अपनी अंतिम वसीयत में अपने सबसे बड़े बेटे को परिवार से प्रतिबंधि (बहिष्कृत) कर दिया और अपने छोटे बेटे को इसका निष्पादक नियुक्त किया।

उसी वर्ष नवंबर में अपने पिता की मृत्यु के बाद अरविंद सिंह ट्रस्ट के अध्यक्ष बने। इस वर्ष सबसे बड़े बेटे महेंद्र सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे विशराज सिंह (राजसमंद से भाजपा विधायक) का ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ किले में पारंपरिक राज्याभिषेक समारोह में मेवाड़ के 77वें महाराणा के रूप में अभिषेक किया गया।

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