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- न्यूज़
- Monday | 21st October, 2024
अदालत ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जब किसी मामले में कानून का दुरुपयोग हो रहा हो तो कोर्ट इस तरह के गंभीर मामलों में प्राथमिकी और अन्य दस्तावेजों के आधार निर्णय लेने में सक्षम है। पीठ ने कहा कि अगर प्रार्थी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
इसलिए दोनों मामले निरस्त किए जाते हैं।
सुनील तिवारी के खिलाफ यौन शोषण और एससी-एसटी को लेकर अरगोड़ा थाना में प्राथमिकी कराई गई थी। सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता प्रशांत पल्लव, पार्थ जालान और शिवानी जालूका ने पीठ को बताया कि प्रार्थी सुनील तिवारी के खिलाफ राजनीतिक विद्वेष के कारण प्राथमिकी की गई थी। किसी मामले में प्राथमिकी को परिस्थितियों से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
इसके अलावा जिस लड़की के साथ यौन शोषण आरोप लगाया गया है।
उसकी ओर से रांची की कोर्ट में केस वापसी के लिए याचिका दाखिल की है। शिकायतकर्ता ने कहा है कि उसने आरोप की सत्यता को समझे बिना कुछ गलतफहमी के कारण प्राथमिकी कराई थी।
वह इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती है। पीड़िता ने सुनील तिवारी पर शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण का आरोप लगाते हुए अरगोड़ा थाने में प्राथमिकी कराई थी।
दूसरे मामले में सुनील तिवारी और पुलिस जवान सचिन पाठक द्वारा गवाहों को धमकाने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी हुई थी। ।
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