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Wildlife Attack: 22 सालों में उत्तराखंड में 1055 लोगों ने गंवाई जान व 4375 घायल, ये थका-सड़ा सिस्टम किस काम का?
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- Saturday | 19th October, 2024
वर्ष 2000 से 2022 तक मौतों के आंकड़े वर्ष -वन्यजीवों के हमले में मौंते 2000 -30 2001 -23 2002 -34 2003 -42 2004 -28 2005 -25 2006 -41 2007 -43 2008 -26 2009 -45 2010 -32 2011 -50 2012 -51 2013 -52 2014 -52 2015 -62 2016 -66 2017 -39 2018 -52 2019 -58 2020 -62 2021 -59 2022 -83 यह भी पढ़ें- Dehradun में सालाना खर्च देकर पालें घड़ियाल-गुलदार, उल्लू के लिए आ रहे बंपर आवेदन 2006 से 2022 तक घायलों का आंकड़ा वर्ष -घायलों की संख्या 2006 -152 2007 -188 2008 -188 2009 -302 2010 -217 2011 -204 2012 -226 2013 -288 2014 -347 2015 -311 2016 -368 2017 -249 2018 -239 2019 -260 2020 -286 2021 -225 2022 -325 सेवानिवृत्त पीसीसीएफ बोले, बदलते व्यवहार पर जमीनी शोध जरूरी हिमाचल प्रदेश के सेवानिवृत्त प्रमुख वन संरक्षक और हल्द्वानी निवासी बीडी सुयाल का कहना है कि बाघ या गुलदार का प्राकृतिक भोजन जंगल में है।
इंसान उसके लिए नई चीज है।
उसके बावजूद गुलदारों का आबादी में आकर हमले करना उनके बदलते व्यवहार को दर्शाता है।
वन विभाग को कागजी की बजाय जमीनी शोध करना होगा।
ये काम जंगल के किसी एक हिस्से में नहीं बल्कि बड़े स्तर पर हो।
तब जाकर मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने की दिशा में ठोस पहले हो सकती है।
मैदानी क्षेत्र में बाघों की संख्या में काफी बढ़ोतरी होने की वजह से भी गुलदार दूसरे जंगल में पहुंच रहे हैं। ।
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