Banbhoolpura Violence: हाईकोर्ट ने की त्वरित टिप्पणी, कहा- `तीन महीने में 12 गवाहों के दर्ज किए बयान`

अपीलकर्ता को निरोध में बने रहने की अनुमति नहीं दे सकते हाईकोर्ट ने कहा है कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र मौलिक अधिकारों में से एक है।

विभिन्न कानूनों के नाम पर लोगों को हिरासत में रखना और जांच की तत्परता का पालन किए बिना, ऐसे कानून अपीलकर्ता को निरोध में बने रहने की अनुमति नहीं दे सकते। अपीलकर्ताओं को नहीं कर सकते परेशान हाईकोर्ट ने कहा है कि हमने जांच में तत्परता नहीं देखी।

जांच सुस्त थी और ऐसी सुस्त जांच के लिए अपीलकर्ताओं को परेशान नहीं किया जा सकता है।

यूएपीए की धारा 43डी(2)(बी) का प्रावधान।

अधिनियम, 1967 90 दिनों की अवधि का अपवाद है और इसका सहारा तभी लिया जा सकता है जब 90 दिनों की अवधि के भीतर जांच पूरी करना संभव न हो। यह भी पढ़ें- UKPSC PCS Result 2021: फैशन की दुनिया छोड़ आशीष ने पाई पहली रैंक, पत्नी डॉक्टर तो बहनें अधिकारी यदि न्यायालय जांच की प्रगति और आरोपी को 90 दिनों की उक्त अवधि से अधिक हिरासत में रखने के विशिष्ट कारणों का संकेत देने वाली लोक अभियोजक की रिपोर्ट से संतुष्ट है तो वह इस अवधि को 180 दिनों तक बढ़ाने का आदेश दे सकता है।

जैसा कि पहले लोअर कोर्ट रिकार्ड और केस डायरी के अवलोकन से कहा गया है। 90 दिनों की अवधि के भीतर यह कानून की मंशा नहीं हो सकती कि जांच अधिकारी चुप रहा और तत्परता से जांच आगे नहीं बढ़ाई और केवल 90 दिनों की अवधि समाप्त होने पर वह अचानक एक आवेदन दायर करने के लिए अपनी नींद से जाग गया कि अतिरिक्त समय की आवश्यकता है। ।

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