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पश्चिमी यूपी में रालोद के लिए बेहद अहम हैं ये दो सीटें, परिणाम तय करेंगे जयंत चौधरी का भविष्य
- न्यूज़
- Monday | 3rd June, 2024
राजस्थान और हरियाणा में सियासी पटकथा लिखने की कवायद पश्चिम उत्तर प्रदेश में रालोद मुखिया जयंत (Jayant Chaudhary) ने भाजपा का साथ पकड़कर अपने वोटों की पूंजी को बचाकर रखने का प्रयास किया, वहीं राजस्थान और हरियाणा तक सियासी जमीन बनाने की पटकथा लिखी पश्चिम उत्तर प्रदेश में रालोद मुखिया जयंत ने भाजपा का साथ पकड़कर अपने वोटों की पूंजी को बचाकर रखने का प्रयास किया, वहीं राजस्थान और हरियाणा तक सियासी जमीन बनाने की पटकथा लिखी। रालोद को रिकार्ड सफलता तभी मिली जब भाजपा से हाथ मिलाया।
पार्टी ने 2002 में भाजपा के साथ विधानसभा चुनाव लड़कर जहां 14 विधायकों को सदन में पहुंचाया, वहीं 2009 में पार्टी के पांच लोकसभा प्रत्याशी जीत गए।
इस दौरान पश्चिम से भाजपा के सिर्फ चार सांसद जीते थे।
2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर दोनों दलों के साथ आने से अखिलेश-राहुल की चुनौतियां बढ़ीं।
उधर, भाजपा ने जाट वोटों को साधने के लिए जयंतको विशेष तवज्जो दी।
रालोद को दो लोकसभा टिकट, एक कैबिनेट मंत्री व एक एमएलसी सीट मिली। मजबूत जमीन पर कमजोर रही पकड़ राष्ट्रीय लोकदल बनाने के बाद तत्कालीन अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह राजग एवं संप्रग सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे।
उन्होंने कांग्रेस, भाजपा और सपा के साथ गठबंधन आजमाया, लेकिन जमीन पर संगठन कमजोर होता रहा। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में सिर्फ दस सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें पश्चिम क्षेत्र की चार सीटें थीं, जबकि भाजपा से हाथ मिलाने वाले रालोद ने पांच सीटें जीत लीं जो अब तक सर्वाधिक हैं। तत्कालीन रालोद मुखिया अजित चौधरी ने बागपत, उनके पुत्र जयंतचौधरी ने मथुरा, देवेंद्र नागपाल ने अमरोहा, संजय चौहान ने बिजनौर, जबकि सारिका सिंह ने हाथरस की सुरक्षित सीट जीती थी।
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