शोध के बाद केंद्र सरकार संबंधित डाटा सार्वजनिक करेगी, जिसका उपयोग देशभर की दवा निर्माता कंपनियां कर सकेंगी।
इससे देश में दवा की गुण्वत्ता एवं उत्पादन में बड़ा परिवर्तन आएगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे ज्यादा समय व खर्च मालीक्यूल बनाने व शोध में लगता है।
अभी यह कंपनी एआइ की मदद से कार्डियोवैस्कुलर, सोरायसिस, फेफड़ों का कैंसर और आटो इम्यून जैसी गंभीर बीमारियों की दवाओं की खोज पर काम कर रही है। मोदी की बायो ई-3 नीति से खुली लैब की राहकेंद्र सरकार ने जुलाई 2024 में बायो ई-3 नीति लागू की, जिसमें जैव-आधारित रसायन, एंजाइम, खाद्य पदार्थ, स्मार्ट प्रोटीन, जैव चिकित्सा, जलवायु अनुकूल कृषि, कार्बन कैप्चर और उसका उपयोग एवं समुद्री व अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) माडल पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। एआइ की मदद से ड्रग रिसर्च करने वाली कंपनी बोल्टमैन ने अमेरिका की एक दवा निर्माता कंपनी के लिए मालीक्यूल का क्लीनिकल ट्रायल तेजी से संपन्न किया।
इसका डाटा भारत सरकार से साझा किया गया, जिसके आधार पर हैदराबाद में आटोमैटिक ड्रग डिस्कवरी लैब को हरी झंडी मिली।
परितोष ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बायो ई-3 नीति से प्रेरित होकर कंपनी ने रोबोट लैब खोलने का संकल्प लिया है। नोबेल पुरस्कार विजेता ने भी साबित की एआइ की उपयोगितापरितोष ने इस वर्ष ड्रग डिस्कवरी में एआइ के प्रयोग पर नोबेल पुरस्कार जीत चुके 48 वर्षीय डेमिस हसाबिस की कंपनी डीप माइंड के लिए भी काम किया है।
यहां एआइ की मदद से विभिन्न प्रोटीन का स्ट्रक्चर तैयार कर जनहित में सार्वजनिक किया गया।
If You Like This Story, Support NYOOOZ
Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.
अन्य मेरठ की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।
डिसक्लेमर :ऊपर व्यक्त विचार इंडिपेंडेंट NEWS कंट्रीब्यूटर के अपने हैं,
अगर आप का इस से कोई भी मतभेद हो तो निचे दिए गए कमेंट बॉक्स में लिखे।