Banke Bihari Temple: हथिनी के मुंह से आने वाले जल में सिर्फ एसी का पानी ही नहीं… सामने आई वीडियो की सच्चाई

वही जल परिक्रमा में से बनी पत्थर की हथिनी से चरणामृत तक पहुंचता है।

मंदिर में इस तरह चरणामृत निकालने का भाव ये है कि मंदिर के आसपास श्रद्धालु ही नहीं कोई भी जीव, जंतु जो सीधे रूप से ठाकुरजी का चरणामृत नहीं पा सकता, उसे इसके जरिए ठाकुरजी का चरणामृत पाने का सौभाग्य मिल सके। गर्भगृह का ही शुद्ध जल निकलता हैसेवायत आभाष गोस्वामी कहते हैं कि मंदिर की परिक्रमा में गर्भगृह के पीछे बनी हथिनी से शुद्ध चरणामृत ही निकलता है।

सुबह गर्भगृह को धोया जाता है और फिर ठाकुरजी काे स्नान कराया जाता है।

ऐसे में जो जल हथिनी से निकलता है, वह गर्भगृह का ही शुद्ध जल होता है। ठाकुरजी गर्भगृह में ही विश्राम करते हैं, टहलते हैं।

भाव ये भी है कि जब ठाकुरजी निधिवन जाते हैं, तो गर्भगृह की धरती पर उनके चरण पड़ते हैं, तो जो भी जल चाहे गर्भगृह को धोने का हो, ठाकुरजी को स्नान करवाने का या फिर एसी से निकलने वाला जल भी इसी में मिलकर हथिनी से निकल रहा है, तो शुद्ध रूप से वह ठाकुरजी का चरणामृत ही है।  एसी से निकलने वाला पानी भी चरणामृतसेवायत कहते हैं, जिस तरह हम गंगाजल लाकर पूजा के लिए थोड़ा गंगाजल घर के जल में मिला देते हैं, तो उसे गंगाजल का ही स्वरूप मानते हैं, तो एसी से निकलने वाला पानी भी जब गर्भगृह के पानी में मिल जाता है, वह भी तो गर्भगृह का ही जल है और शुद्ध चरणामृत ही है। मंदिर में 20 वर्ष पहले लगे एसीसेवायत रजत गोस्वामी कहते हैं कि गर्भगृह में दो एसी लगे हैं।

ये एसी करीब बीस वर्ष पहले लगे थे।

1864 में मंदिर का निर्माण हुआ था।

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