अखिलेश की सक्रियता और शिवपाल का दिमाग, चाचा-भतीजे की जोड़ी ने सपा को दिलाया जबरदस्त कमबैक; गढ़ में फिर वापसी

डिंपल यादव ने भी झोंकी ताकत मैनपुरी में प्रचार खत्म होने के बाद डिंपल यादव और उनकी बेटी अदिति ने भी ताकत झोंकी।

कुल मिलाकर अखिलेश ने कुनबा जोड़कर गढ़ सहेज लिया। मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई थी।

तब से ही इटावा और कन्नौज में पार्टी का दबदबा रहा।

2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कन्नौज, फर्रुखाबाद और इटावा की तकरीबन सभी विधानसभा सीटों पर कब्जा जमाया था। प्रदेश में सपा सरकार के दौरान ही पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच अपने मजबूत गढ़ इटावा और फर्रुखाबाद की सीट गंवाकर जैसे तैसे 20 हजार के अंतर से कन्नौज की सीट बचा पाई। 2009 में सपा को करना पड़ा था मुश्किलों का सामना 2009 में लाखों के अंतर से जीतने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव भाजपा के सुब्रत पाठक को 19,907 मतों से ही पराजित कर पाई थीं।

तब डिंपल को 4,89,164 मत हासिल हुए थे।

इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने कन्नौज की पांचों विधानसभा सीटें गंवा दी थीं। 2019 में डिंपल को 5,50,734 मत जरूर मिले, लेकिन वह भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक से करीब 12 हजार मतों से हार गई थीं।

प्रदेश में 2022 के विस चुनाव में जब अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी, तब कन्नौज लोकसभा क्षेत्र की बिधूना सीट पर ही सपा को जीत मिली। फर्रुखाबाद में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा ने लोकसभा क्षेत्र की अलीगंज, कायमगंज, अमृतपुर, भोजपुर पर जीत हासिल की थी।

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