हे भगवान! हरिद्वार में गंगाजल पीने योग्य नहीं, उत्तराखंड से बाहर निकलते ही मैली हो रही गंगा

यह भी पढ़ें- उत्‍तराखंड की वादियों में वक्‍त बिताना चाहते हैं तो खबर आपके लिए, तीन पहाड़ी इलाकों के लिए शुरू होगी हेली सेवा विशेष यह कि गंगा तीर्थ होने के कारण हरिद्वार में हर वर्ष देश-विदेश से करोड़ों की संख्या श्रद्धालु गंगा स्नान को आते हैं और गंगाजल धार्मिक कार्यों और नियमित सेवन को यहां से गंगाजल लेकर जाते हैं।

इसका दूसरा पक्ष यह है कि यही श्रद्धालु गंगा नदी व विभिन्न गंगा घाटों पर बड़ी मात्रा में गंदगी छोड़ जाते हैं, जो कि गंगाजल की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित करती है।इसी वर्ष 22 जुलाई से दो अगस्त तक चले कांवड़ मेले में पहुंचे श्रद्धालु 11 हजार मीट्रिक टन कूड़ा गंगा घाटों पर छोड़ गए थे, इसमें बड़ी मात्रा में अपशिष्ट भी शामिल था।

यह कूड़ा गंगा में भी प्रवाहित हुआ।

इसके अलावा तमाम रोकथाम व सावधानी के बावजूद शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन निकलने वाली सीवरेज गंदगी का एक हिस्सा किसी न किसी तरह गंगा में प्रवाहित हो रहा है, जो उसके जल की गुणवत्ता को नष्ट कर रहा है। गंगा को मैला कर रहा शोधित-गैर शोधित सीवरेज जलगंगाजल के पीने योग्य न होने का सबसे बड़ा कारण गंगा में गिरने वाला शोधित-गैर शोधित सीवरेज जल व ड्रेनेज जल है।

इसीलिए तमाम प्रयासों के बावजूद हरिद्वार में गंगाजल को पीने योग्य नहीं बनाया जा सका है।हरिद्वार में सीवरेज जल को शोधित करने वाली 68 और 14 एमएलडी एसटीपी का संचालन कर रहे जल निगम के अभियंता विशाल कुमार कहते हैं कि सिंचाई की आवश्यकता वाले महीनों के दौरान शोधित सीवरेज जल का 50 प्रतिशत किसानों को चला जाता है और बाकी का गंगा में जाता है।

लेकिन, जब किसानों को उसकी आवश्यकता नहीं होती तो मजबूरन उसे सीधे गंगा में डालना पड़ता है। बताया कि कुछ मौकों पर क्षमता से अधिक सीवरेज जल आने पर हम लोग एसटीपी का सर्किल समय कम कर उसे शोधित करने की कोशिश करते हैं, लेकिन जब इससे भी बात नहीं बनती है तो कभी-कभी बिना शोधित सीवरेज-ड्रेनेज जल को भी सीधे गंगा में डालना पड़ता है। बीओडी और फिकल कोलिफार्मबीओडी (बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड), जिसे जैविक आक्सीजन मांग भी कहा जाता है, पानी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों (अपशिष्ट ) को नष्ट करने के लिए आक्सीजन की आवश्यक मात्रा को मापने का तरीका है। यह अपशिष्ट जल में कार्बनिक प्रदूषण का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले चार सामान्य परीक्षणों में से एक है, जो कि खास समय अवधि और तापमान पर पानी के नमूने में मौजूद एरोबिक बैक्टीरिया की उपभोग की जाने वाली आक्सीजन की मात्रा को मापता है।यह भी पढ़ें- Dehradun Crime: जिस कमरे में छात्रा संग हुई थी हैवानियत, वहां रहता मिला ऐसा शख्‍स जिसे देख पुलिस हैरान पीसीबी के अनुसार नहाने योग्य नदी जल के लिए आक्सीजन का मानक पांच मिली ग्राम प्रति लीटर होता है।

इसी तरह फिकल कोलिफार्म नदी जल में मौजूद अपशिष्ट (मल-मूत्र) की मात्रा को बताता है।

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