दीपावली हो तो वनटांगियों वाली, हर साल सीएम योगी संग मनाते हैं दीपोत्सव

ब्रिटिश हुकूमत में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई।

इसकी भरपाई के लिए बर्तानिया सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण व उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल में बसाया।

साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।

कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नंबर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं।

इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर 18 गांव बसे।

जंगल में बने रहने को गई दो वनटांगियों की जान साखू के पेड़ों से जंगल संतृप्त हो गया तो वन विभाग ने अस्सी के दशक में वनटांगियों को जंगल से बेदखल करने की कार्रवाई शुरू कर दी।

वन विभाग की टीम छह जुलाई 1985 को जंगल तिनकोनिया नंबर तीन पहुंची।

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