जागरण संवादी के ओपन माइक में नवांकुरों ने बिखेरे विविध रंग, `माना कि सफर मुश्किल है, मगर भागो मत...`

इसे भी पढ़ें-संवादी गोरखपुर: सजा विचारों का मेला, अभिव्यक्ति के उत्सव का हर रंग अलबेला सत्र का शुभारंभ करते हुए युवा कवियत्री आकृति विज्ञा अर्पण ने बेटियों के प्रति हो रहे अपराध पर चिंता जताते हुए सुनाया कि-सुनो बसंती हील उतारो, अपने मन की कील उतारो।

नंगे-पांव चलो धरती पर, बंजर पथ पर झील उतारो आकृति ने अपनी कविता के माध्यम से महिलाओं के सम्मान की अपील की। संभावनाशील कवियत्री सौम्या द्विवेदी ने युवाओं के संघर्ष को उल्लिखित करते हुए सुनाया कि तुम शांत रहते हो, पर शांत रहना नहीं चाहते, भीड़ में रहते हो, पर रहना नहीं चाहते।

इसके साथ ही सफर पर अपनी रचना माना कि सफर मुश्किल है, मगर भागो मत।

सुनाकर सभी का ध्यान आकृष्ट किया।

शहर के चर्चित कवियों में शुमार हो चुके मृत्युंजय उपाध्याय नवल ने अपने कालेज के दिनों के सौंदर्यबोध को याद करते हुए तुम्हारा मिलना कविता पाठ किया। जागरण संवादी में इतिहासविद् प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी को सम्मानित करते सहायक महाप्रबंधक प्रवीण कुमार।

जागरण उन्होंने सुनाया कि तुम जब मिलती थी, तो अनायास ही बिछ जाती थीं राहें।

फिर छा जाता था पलकों पर ख्वाबों का नेटवर्क...।

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