ध्यान हेतु प्रेषित : श्री मल्लिकार्जुन खर्गे, कांग्रेस अध्यक्ष |

संक्षेप:

BY- नमित वर्मा, कांग्रेस सदस्य |

प्रिय खर्गे जी,

नमस्कार|

आप कॉंग्रेस अध्यक्ष हैं; यह इस बात का सूचक है की आपका चिंतन-दर्शन एक साधारण व्यक्ति से कहीं ज्यादे प्रबल और उत्तीर्ण है| हम सभी कॉंग्रेसजन ऐसा मानते हैं|

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सभी कॉंग्रेसजन, कॉंग्रेस सदस्य और कार्यकर्ता सहनशील मत के अनुयायी हैं और सभी क्षेत्रों में, यथासंभव, अहिंसा के लिए प्रतिबद्ध हैं| वाणी में अहिंसा, गांधीवादी मर्यादा है और हमारी सामाजिक-राजनैतिक विरासत भी|

मूल कांग्रेस पार्टी ने कभी पंथ और जाति के विभाजित करने वाले संकीर्ण दायरों को अपने सोच और लक्ष्य का आधार नहीं मना|

समाज के विधान से रुष्ट और प्रताड़ित महसूस करने वाले वर्गों को सम्मिलित करने हेतु, कॉंग्रेस पार्टी ने समझौते किए और सेक्युलर आयाम के अंतर्गत धर्म-निरपेक्ष से धर्म-सापेक्ष का सफर तय करते हुए एक नए दार्शनिक दायरा की उत्पत्ति की| इसी भावना को कार्यान्वित करने के लिए पूना पैक्ट जैसे समझौते हुए| आगे चलकर और भी वर्गों के द्वारा महसूस बहिष्कार, प्रताड़ना और असामान्यता की भावना का निवारण करने हेतु कई और कदम उठाए गए|

चिरकाल से चली आ रही पद्धतियां एवं मानव इतिहास के मार्ग में परिवर्तित और नवीनीकृत मान्यताओं के द्वारा भारतखण्ड और उसके पड़ोस में कई पंथों का उदय हुआ| सरल भाषा में इन पंथों को धर्म की संज्ञा प्रदान की गयी अथवा ऐसा ही स्वीकारा गया|

ज्यादातर पंथों में, कर्म की कोइ न कोइ मान्यता जरूर है, करनी और भरनी का रिश्ता मनुष्य के मूल सोच में जागृत एवं मान्य रहा है| इसी समानता के आधार पर पंथ और जातियों से बड़े, राष्ट्रीय समाज की रचना आज़ाद भारत के संविधान के अंतर्गत हुई| कथित हिन्दू धर्म में कई परस्पर विरोधी वैचारिक पंथों का समन्वय है; यह समन्वय और स्वीकार्यता ही वसुधैव कुटुम्बकम का सरल सामाजिक आधार है| इसी कारण कई पंथों के लोग अपने-आप को हिन्दू मानते हैं और गूढ़ भिन्नताओं से ऊपर उठकर इस मानव महासंगम में अपनी पहचान देखते हैं|

सुना है, आप बौद्ध दर्शन के अनुयायी हैं| कॉंग्रेस पार्टी की प्रेरणास्तोत्र थिओसॉफी दार्शनिक पद्धति और स्वयं मैंने भी, बौद्ध दर्शन को हिन्दू दर्शन से पृथक कभी नहीं समझा| योग वशिष्ठ में ऋषी अपनी उन्नति के वृत्तांत में लिखते हैं, की सम्पूर्ण ज्ञान अर्जित करने की उनकी यात्रा को सफल बनाने के लिए स्वयं तारा माता ने उन्हीं वशिष्ट ऋषी को, अपने सबसे बड़े भक्त, बुद्धरूपी विष्णु, की शरण में भेजा था| इस तथ्य के बावजूद भी, हम सभ्य और सहिष्णु कॉंग्रेसजन, बौद्धों के पृथक अस्तित्व की ईच्छा में कभी भी बाधक नहीं बने; आत्मनिर्णय का अधिकार कॉंग्रेसी विचार का आधारभूत परिचायक है|

बौद्ध दर्शन जिस शून्यता के रहस्य पर आधारित है वह शून्यता, सनातनी शून्यता से परे है, ऐसा बहुतों का मानना रहा है| फिर भी, बौद्ध दर्शन के प्रत्येक संस्करण में करनी और भरनी, अर्थात कर्म योग, की मान्यता बनी रही है| विगत दिनों में वैश्विक स्तर पर उभर रहे सोका गाकई बौद्ध दर्शन तो प्रायः कर्म मार्ग का ही सूचक है|

कॉंग्रेस अध्यक्ष के गरिमामई सांसारिक हैसियत से आपने सवाल किया, "अरे भाई, गङ्गा में डुबकी लेने से गरीबी दूर होती क्या ?"

ज़िंदगी भर कॉंग्रेस सदस्य बने रहने के कारण, कांग्रेस अध्यक्ष के मुंह से ऐसे प्रश्न ने मुझे झंझोर कर विचलित कर दिया; पार्टी में संवाद के अंतर्गत इसका जवाब देने को मजबूर भी किया| हाँ, गङ्गा जी में डुबकी लगाने से गरीबी दूर होती है| यही विशवास हमारे देश और समाज का एक मूलभूत स्तम्भ है| कुम्भ में शामिल करोड़ों भारतवासी इस विशवास के प्रतीक हैं|

रही बात, गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी कैसे दूर होती है? कर्म के विधान को अंशमात्र भी स्वीकारने वाले हमारे देश के बंधू-बांधव, पिता-पुत्र, माताएं-बहनें-पुत्रियां, यह मानते हैं की हमारी स्थिति, हमारे संचित कर्मों की देन है, प्रारब्ध द्वारा संचालित है| ऐसे में, जब गङ्गा जी में, वह भी पूर्ण महाकुम्भ के शुभ अवसर पर, डुबकी लगाने से हमारे पाप कट जाते हैं, तब निश्चय ही हमारा कार्मिक प्रारब्ध सुधर जाता है| इस कार्मिक प्रारब्ध-सुधार से गरीबी के भयावह दुःख से हम सबको निवृत्ति मिल जाती है| ऐसा भारतीय लोगों का मानना है|

जनमानस का विशवास ही सामाजिक और राजनैतिक संरचना का आधार है, सभी संस्थाओं, राजनैतिक दलों और स्वयं देश का भी, यही मूलभूत आधार है| उम्मीद करता हूँ की आप, कांग्रेस अध्यक्ष महोदय, इस तथ्य को स्वीकार करेंगे और इसे आत्मसाध करेंगे| यदि ऐसा है, तो आपका प्रश्न स्वयं उत्तरित है|

अन्यथा, फिर शेष रही बात, मान्यता और विशवास की पुष्टि करने की: पाप काटना और गरीबी से उद्धार, यह प्रणाली का पूर्ण स्वरूप क्या है, कैसे कार्यान्वित होती है, यह लम्बा किन्तु रोचक विषय है| यदि आपकी रूचि है, तब इस चर्चा हेतु आप सादर आमंत्रित हैं| व्यापक लाभ हेतु, यह चर्चा पार्टी के किसी उपयुक्त सार्वजनिक मंच पर भी की जा सकती है|

अंततः प्रश्न मात्र जन-सामान्य की भावनाओं को ठेस लगने की या माफी मांगने का नहीं है| यह विषय कांग्रेस और भारत देश के समग्र चिंतन, निष्ठा, परंपरा का है| इस विषय को इसी तौर पर अपने फैसलों और कार्यवाही में सम्मिलित करने में ही सभी की भलाई है|

 

सादर,

नमित वर्मा, कांग्रेस सदस्य |

डी-१-१२७४ वसंत कुञ्ज, नई दिल्ली 110070;

ई-मेल : namit.khajuraho@gmail.com    https://x.com/namitverma

 

बुद्धवार, २९ जनवरी, २०२५ |

 

प्रति: सभी कॉंग्रेसजन, भारतवर्ष|

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