Bihar Flood: बाढ़ की आहट होते ही नाव बनाने में जुटे कारीगर, इस साल खर्च करने पड़ेंगे इतने रुपये

प्रसव के लिए अस्पताल जाना हो, मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट पहुंचना हो या रोजमर्रा के काम नाव के बिना यहां कुछ भी संभव नहीं है।

नाव ही इनके जीवन का आधार है। विवाह में बरात का दरवाजा लगाने या दुल्हन को लाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है।

अधिकतर परिवार नाव रखना अपनी शान समझते हैं।

बाढ़ में यहां नाव की मांग बढ़ जाती है। लोग अग्रिम राशि जमा कर नाव बनाने के ऑर्डर देते हैं।

नाव बनाने के लिए शीशम और जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है।

10 से 22 हाथ तक की नाव बनती है। जामुन की लकड़ी से बनी नाव 2000-2500 एवं शीशम से बनी नाव 5000-5500 रुपये प्रति हाथ की दर से बिकती है। शीशम के नाव की अधिक है कीमत bihar flood: बड़गांव के नाव बनाने वाले करीगर भीखन शर्मा, लक्ष्मी शर्मा, हरौली के अघनु शर्मा व पचहरा के रमाकांत शर्मा ने बताया कि अग्रिम राशि जमा कर लोग नाव बनाने का ऑर्डर देते हैं। नाव को पानी में गिराने से पहले इसके गह (दरार) को रुई या सोन की सुतली से भर कर अलकतरे की लेप लगाई जाती है, ताकि पानी का रिसाव न हो। नाव बनाने के लिए शीशम एवं जामुन की लकड़ी का उपयोग होता है।

जामुन की अपेक्षा शीशम की लकड़ी की नाव अधिक मजबूत और टिकाऊ होती है, लेकिन मंहगा होने के कारण जामुन से बनी नाव की मांग अधिक होती है। उनका कहना है कि अधिकांश लोग रेडिमेड नाव खरीदते हैं, लेकिन संपन्न परिवार के लोग अपने दरवाजे पर शीशम की लकड़ी से नाव तैयार करवाते हैं। व्यक्तिगत उपयोग के लिए 10-12 हाथ, भाड़े पर चलाने के लिए 14-16 और माल ढुलाई के 18-22 हाथ की नाव का उपयोग होता है।

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